चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन म नौकरी करत मोला डेढ़ बछर होगय रहे। शुरू शुरू म मोला लागे कि ….मैं ये कहां आके फँस गए ! फेर धीरे-धीरे करत मैं उहां खुसर गए रहय। फेर अतेक दिन ल मोर देश -राज कोती के एको झन मनखे नइ भेटाय रहिन। डेढ़ साल के लम्मा समे के बाद म आज ये दे मोर कोती के एक झन मनखे माखनलाल हर भेंटाय रहीस।वोहर मोर तरी म इहां लगे रहीस।
फेर वोकर साथे -साथ तीन चार अउ आदमी मन घलव रहीन मोर तरी म। वोमन म के एक झन गोस्वामी हर झारखंड ल रहिस अउ दु झन टाइगर अउ शांता मन आसाम ले रहीन।अब तो हमर जोड़- साज बन गय रहिस। येला उंहा के लोकल संगवारी मन ..एमन के अलग मेजारिटी हे कहत हांसे घलव भी।
आज मोला लोकल सांस्कृतिक प्रतियोगिता म जूरी बनाय गय रहिस। मोर बाकी ये सब संगवारी मन खेलईया रहिन । गोस्वामी के बुता हर जबरजस रहिस ।फेर फाइनल नम्बर देय के बेरा म मोर कलम हर मोर छत्तीसगढिया संगवारी माखनलाल के नाव के जगह म पूरा के पूरा नम्बर भर दिस।का होवत है गोस्वामी के बुता हर निकता हे तब भी। आज मोर तो मन आय ,कोनो ल मैं कतको नंबर देवंव ।
इनाम झोकें के बखत माखनलाल खुस नइ दिखिस तव मैं थोरकुन विपतियागें। का होगे येला।
राजा भइया.. इनाम के असली हकदार तो गोस्वामी भई हर रहिस। वो पाछु भेंटाय रहिस तव कहिस।
“अरे तोला मैं अपने छत्तीसगढिया जान के .. करे रहें। “मैं थोरकुन रोसियावत घलव रहें।
“भइया.. एकठन बात कहँव।”
“बोल…का बात हे तउन ल।” मैं बड़े रोब -दाब के संग म कहेंव।
“हमन पहिली भारतीय अन ,वोकर बाद म कनहू आन छत्तीसगढिया या बेहारी असमी।” माखनलाल डरावत कहिस।
मैं चुप रह गंय । फेर असली खाँटी छत्तीसगढिया ल मैं देखत रहें जेकर आँखी म स्टेशन के बाहिर खुल्ला अगास म लहरत तिरंगा हर पूरा के पूरा रगरगात दिखत रहिस।
–रामनाथ साहू